भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर कविताई का / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमने घर है
बंधु, बनाया कविताई का
 
पड़े नींव में भजन-गीत
अम्मा के गाये
किस्से पुरखों के
दादी ने हमें सुनाये
 
बाबू ने गुर
हमें सिखाया कविताई का
 
चिड़िया की चहकन
संतों की बोली-बानी
लगा नेह का गारा
सत का इसमें पानी
 
मर्म लोक से
इसने पाया कविताई का
 
रहे खुलापन
आँगन हमने रक्खा पूरा
बीच हृदय में देवा रक्खा
जो खाता है भाँग-धतूरा
 
पूरी छत पर
छत्र छवाया कविताई का