भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर का धुआँ / निशान्त
Kavita Kosh से
सामने एक घर में
उठ रहा है धुआँ
घरवालों की
आँखों और साँसों के लिए
बुरा ही सही
मुझे तो लग रहा है
बड़ा भला
धुआँ उठ रहा है
तो लगता है
घर में कुछ रंध रहा है
दाल-भात
उत्सव के लिए कोई पकवान
या पशुओं का चाटा-बाँटा
बड़े घरों में कहाँ रहा अब धुआँ
उनकी ख़ुशहाली तो प्रकट कर देती है
उनकी चमक-दमक ही
ग़रीब घरों की तो अब भी
धड़कन है धुआँ