भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर की याद-5 / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विष पान किया मैंने जग का

जिससे औरों को अमृत मिले
जिससे औरों को फूल मिलें
मैंने काँटे ही सदा चुने

वह विष अंगों में उबल रहा
वे काँटे उर में कसक रहे