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घर पर ही रहना / उषा यादव
Kavita Kosh से
माँ, तुम कल घर पर ही रहना।
बहुत बूरा लगता है मम्मी,
मुझे तुम्हारा दफ्तर जाना।
घर पर लौटूँ और उस समय
दरवाजे पर ताला पाना।
जाने कितनी बातें उस पल
चाहा करती तुमसे कहना,
माँ, तुम कल घर पर ही रहना।
ढका हुआ खाना, खाली घर,
रोज यही तुम मुझको देतीं।
छुट्टी के दिन भी तो मम्मी,
ढेर काम तुम फैला लेतीं।
मैं न ऊबती, घर में होतीं,
यदि दादी माँ अथवा बहना।
माँ, तुम कल घर पर ही रहना।
गरम पकौड़े, मीठा हलवा,
मेवों वाले दहीबड़े हों।
तवा उतरती रोटी खातिर,
मैं पापा दोनों झगड़े हों।
सपना जैसा यह दिन लौटे,
मजा बहुत आएगा, है ना?
माँ, तुम कल घर पर ही रहना।