भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घाँठोॅ-घोॅर / नवीन ठाकुर 'संधि'
Kavita Kosh से
छेलोॅ युग खाय छेल्हां असली,
आयलोॅ युग पाय छीं नकली।
घोर-घांठोॅ मिलाय केॅ खाय लेलां नोन,
मडुआ रोटी पर शोभै छेलोॅ मछली रोॅ तियोन।
आवेॅ दूधोॅ में मिलाय छै पानी,
देखोॅ माय केॅ कहै छै मम्मी।
आवेॅ समय गेलै निकली
छेलोॅ युग खाय छेलां असली।
लहारी दाली रोॅ गेलोॅ महक,
देखोॅ घीयोॅ रोॅ गेलोॅ गमक।
मनोॅ में जागै छै
बढ़ियां चीज सब्भैॅ चाहै छै।
कहै छै ‘‘संधि’’ दुनिया यही में बिकली,
छेलोॅ युग खाय छेलां असली।