भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घाणी में जुत्यां पछै / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊमर रै जादूगरियै
केसां रै कर न्हाखी
     चांदी री कळी

पाण आयोड़ै डील माथै
     पड़ग्या सळ
ढीला हुय’र लटकग्या
     डूंगरिया उठाव

इण घाणी में जुत्यां पछै
कुण जाणै किसी गळी
     नाठग्या उमाव

सोवणा सुपना सजावती आंख्यां में
डेरो न्हाख्यो घरविद री चिंतावां
भांत-भांत री
राग-रागणियां री जागा
गीतां में बसग्या
    आटै-दाळ रा भाव !