भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घायल चिड़ी अर टाबर / सांवर दइया
Kavita Kosh से
गोळी रै धमाकै सागै
घायल हो जावै आंगणै में पड़ै
आभै उड़ती चिड़ी एक
खून सूं लथपथ पांखां देख
डरूं-फरूं हुवै टाबर
आभै कानी देखै-
अलघै-अळघै तांई
आंख्यां आगै अंधारो !