भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घायल सपने / राजीव रंजन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरस रहा आज झमाझम
देखो कैसे बादल।
हर्शित धरती की आज बज रही
देखों कैसे पायल।
उम्मीदों के अद्धन में
कैसे पक रहा
खुशियों का चावल।
लेकिन फरेबी हवाओं से
आज भी सपने हो रहे
कैसे घायल।