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घास - २ / नरेश अग्रवाल
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घास जन्म लेती है
मिट्टी से फूटकर
लिये इच्छाएं
चॉंद छूने की
लेकिन समय के साथ
कभी काट दी जाती है
तो कभी कुचल दी जाती है
या फेंक दी जाती है
उखाड़ कर दूर कहीं ।
कोई नहीं सोचता
इनके नन्हें से मन का दर्द
न ही कोई झॉंकता
इनके चेहरों की तरफ
यहॉं तक कि बड़े पेड़ भी
रहने नहीं देते इन्हें
अपनी छाया के आस-पास
हर बार लोगों के
मुंह से निकल
गुस्से की पी खाकर
सो जाती है बेचारी
बिना किसी शिकायत के
चुपचाप ।