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घिस जाता है सब कुछ / मिथिलेश श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
माँजते-माँजते बर्तन
घिस जाता है सब कुछ
निशान जो उँगलियों में पड़ जाते हैं
गहराते रहते हैं
ख़ून नहीं बहता ।