देखा था वरुण ने जिस दिन
माँ को लौटते हुए पतितालय से
यतीम हो गईं थीं अनायास बातें।
धानवती ज़मीन के बीचोबीच बराबर
करता रहा था चहलक़दमी
दिक् विहीन
शून्यता की परिव्राजक होकर।
उस दिन से हैं दोनों आँखें नदी
हैं धान की बालियों पर ओस की बून्दें
बजता रहा है ह्रदयपिण्ड का घण्टा रह-रहकर।
प्रतिदिन के सूरज डूबने की क़सम
इस शरद के अन्त में
उड़ जाएगा साइबेरियाई पक्षी के संग
दूर, बहुत दूर।
महमूद नोमान की कविता : ’ঘুণপোকা’ का अनुवाद
मूल बांग्ला से अनुवाद :सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब यही कविता मूल भाषा में पढ़िए
ঘুণপোকা
মাকে যেদিন পতিতালয় থেকে আসতে
দেখেছিল বরুণ -
কথারা অমনি এতিম হয়ে গিয়েছিল।
ধানবতী জমির মাঝ'খান বরাবর
হেঁটেছিল দিনভর,
দিকবিহীন
শূন্যতার পরিব্রাজক হয়ে।
সেদিন থেকে দু'চোখ নদী-
ধানের শীষে শিশির কণা
হৃদপিণ্ডের ঘণ্টা বাজে থেমে থেমে।
প্রতি দিবসের সূর্য ডোবার কসম,
এই শীতের শেষে
সাইবেরিয়ান পাখির সাথে উড়ে যাবে
দূরে,অনেকদূর।