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घुम्मत फिरत / धनेश कोठारी
Kavita Kosh से
थौळ् देखि जिंदगी कू
घुमि घामि चलिग्यंऊं
खै क्य पै, क्य सैंति सोरि
बुति उकरि चलिग्यऊं
लाट धैरि कांद मा
बळ्दुं कु पुछड़ु उळै
बीज्वाड़ चै पैलि मि
मोळ् सि पसरिग्यऊं
उकळ्यों मि फलांग मैल
सै च कांडों कु क्वीणाट
फांग्यों मा कि बंदरफाळ्
तब्बि दिख्यो त अळ्सिग्यऊं
फंच्चि बांधि गाण्यों कि
खाजा - बुखणा फोळी - फाळी
स्याण्यों का सांगा हिटण चै पैलि
थौ बिछै पट्ट स्यैग्यऊं
थौला पर बंध्यां छा सांप
मंत्रुं का कर्यां छा जाप
दांत निखोळी बिष बुझैई
फुंक्कार मारि डसिग्यऊं