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घेरो / निशान्त
Kavita Kosh से
पुराणै बेली
का रिस्तैदार सूं
मिलती बगत
याद नीं आवै
पुराणी मीठी यादां
तोड़ नीं सकै
मोजूदा झंझटा रो
घेरो।