भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घोंसला / संतोष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
इश्क दुआ बन जाता है
जब सहेज लेता है कोई
ढाई अक्षर की इबारत
दिल की किताब पर
संवर उठती है कायनात
सूरज के लाल दरवाजे तक
तोरने बंध जाती हैं
ढोलक पर गाए जाते हैं गीत
अनंत जन्मों के
आंधियाँ ठिठक कर
पुकार उठती हैं
मर्हबा ...मर्हबा
तब कहीं से एक तिनका
उड़ता आता है
और दिल के वीराने में
घोंसला बुन जाता है