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चउका चढ़ि बइठलन कवन साही / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चउका चढ़ि बइठलन कवन साही, राजा रघुनन्नन हरि।<ref>इस गीत में ‘रघुनन्नन हरि’ पद ‘हर गंगा’ आदि के समान टेक के रूप में व्यवहृत है। यह पद ‘कवन साही’ के लिए उपमान के रूप में भी प्रयुक्त माना जा सकता है। ‘कवन बाबू’ के स्थान पर पैर-पूजी करने वाले व्यक्ति का नाम उच्चरित किया जाता है।</ref>
पूजहऽ पंडित जी के पाओ<ref>पाँव, पैर</ref> सुनहु रघुनन्नन हरि॥1॥
पाओं पुजइते सिर नेवले<ref>नचाते हैं, झुकाते हैं</ref> राजा रघुनन्नन हरि।
देहऽ पंडितजी हमरो असीस, सुनहु रघुनन्नन हरि॥2॥
दुधवे नहइह<ref>दूध से नहाना, अर्थात घर में दूध-दही की नदी बहना</ref> बाबू पुतवे पझइह<ref>पूत-पझाना, अर्थात पुत्र-पुत्री</ref> रघुनन्नन हरि।
चउका चढ़ि बइठलन कवन साही, राजा रघुनन्नन हरि।
पूजहऽ चाचा जी के पाओं सुनहु रघुनन्नन हरि॥4॥
पाओं पुजइते सिर नेवले, राजा रघुनन्नन हरि।
देहऽ चच्चा जी हमरो असीम, सुनहु रघुनन्नन हरि॥5॥
दुधवे नहइह बाबू, पुतवे पझइह, रघुनन्नन हरि॥6॥
चउका चढ़ि बइठलन कवन साही राजा रघुनन्नन हरि।
पूजहऽ चाची जी के पाओं, सुनहु रघुनन्नन हरि॥7॥
पाओं पुजइते सिर नेवले, राजा रघुनन्नन हरि।
दुधवे नहइह बाबू पुतवे पझइह, रघुनन्नन हरि॥9॥

शब्दार्थ
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