भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चकित चकता चौंकि चौंकि उठै बार बार / भूषण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चकित चकत्ता चौंकि चौंकि उठै बार बार,
           दिल्ली दहसति चितै चाहि करषति है.
बिलखि बदन बिलखत बिजैपुर पति,
           फिरत फिरंगिन की नारी फरकति है.
थर थर काँपत क़ुतुब साहि गोलकुंडा,
           हहरि हवस भूप भीर भरकति है.
राजा सिवराज के नगारन की धाक सुनि,
           केते बादसाहन की छाती धरकति है.