चरबाहा / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
हम्में चरबाहा छीं!
पेटोॅ में ओॅन नै डाँड़ाँ में धरिया छेॅ,
चैतोॅ-बैसाखोॅ के भरलोॅ दुपहरिया छेॅ,
पुलठी छेॅ हाथोॅ में, सौंसे दे खाली छेॅ,
गाय-भैंस-बकरू लेॅ मुहों में गाली छेॅ,
दौड़ै छीं खेतोॅ में, आगनी के रेतोॅ में,
पड़लोॅ बबडर मं, बाङा के फाहा छीं!
जिनगी में आठ चैत ऐलोॅ छेॅ गेलोॅ छेॅ,
टॅवर छीं, दुनियाँ में आभीं की भेलोॅ छेॅ?
एक मुट्ठी भातोॅ केॅ माँड़ोॅ में खौजैं छीं,
मालिक के गारी सें कान केॅ बोझै छीं,
भूँसा के जाली में, लारा के टाली में,
ऐङना गुहाली में-हमी करबाहा छीं!
जखनी परोसी केॅ दै छै मुरारी केॅ
ललचै छींदेखी केॅ दाली-तरकारी केॅ
जाय केॅ गुहाली में हँस्तै छीं गैया केॅ
टुन्नी ने दूध भात दै छै बिलैया केॅ
दूरोॅ सें देखै छीं, मनोॅ में लेखै छीं,
भुखलोॅ अरमानोॅ के हम्में भरबाहा छीं!