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चलऽ सखि, खेतबा में / सच्चिदानंद प्रेमी
Kavita Kosh से
पुरवा पछिममा से,
उतर दखिनमा से-
अयलइ बदरिया तान-
कि चलऽ सखि, खेतबा में रोपे झुकि धान
बीचे बीचे धान डोभव, अउँठी खेसाढ़ी।
सुघड़ सोभाव बलम बान्हे केयारी,
पानी हे डोभ लगल,
कादो में हाँथ धसल;
हरबा के पीछे खोंपऽ
चुनी-चुनी वान
कि चलऽ सखि खेतबा में
रोपे झुकि धान।
पिपरा पर बुतरून सब खेले नुक्का चोरी
निमिया तर ढुलुआ में ढुले गोरी कोरी
बदरो तो घिर-घिर आवे
बुंदा-बुंदी साथे लावे
दिनवा अन्हार, सिहरें-
सिहरन से काँपे परान
झुकि-झुकि हाँथ मारू लचके कमरिया
बतीसो बयार सहल वाली उमिरिया
प्रीत सखि मीत जाने
अँखिया के राहे फाने
कनखी में लाला अयलन
लेके जलपान