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चले गए पिता के लिए / शहनाज़ इमरानी

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बेपरवाह-सी इस दुनिया में
मसरूफ़ दिन बीत जाने के बाद
तुम्हारा याद आना
पिता तुम मेरे
बहुत अच्छे दोस्त थे

हम दोनों
तारों को देखा करते
आँगन में लेटे हुए
बताया था तुम्हीं ने
कई रंगों के होते है तारे
और तुम भी एक दिन
बन गए सफ़ेद तारा
देखना छोड़ दिया मैंने तारों को

पिता होने के रौब और ख़ौफ़ से दूर
काँधे पर बैठा कर तुमने दिखाया था
आसमान वो आज भी
इतना ही बड़ा और खुला है

सर्वहारा वर्ग का संघर्ष
कसता शिकंजा पूँजीपतियों का
व्यवस्था के ख़िलाफ़
नारे लगाते और
लाल झण्डा उठाए लोगों के बीच
मुझे नज़र आते हो तुम

समुद्र-मन्थन से निकले थे
चौदह रत्न एक विष और अमृत भी
देवताओं ने बाँट लिया था अमृत
शिव ने विष को गले में रख लिया

जहाँ खड़ा था कभी मनु
खड़ा है वहीँ उसका वारिस भी
पिता तुम्हारी उत्तराधिकारी
मैं ही तो हूँ।