भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चलो-चलो अब घूमेंगे / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
बहुत पढ़ाई कर ली भाई
चलो-चलो जी, अब घूमेंगे,
सुंदर पर्वत, सुंदर नदियाँ
साथ इन्हीं के हम झूमेंगे।
देखो, फूल खिले हैं बाहर
मीठी सी मुसकान लुटाते,
चिड़ियों के संग बातें करते
चिड़ियों के संग गाना गाते।
तुम आओगे तो तुम पर भी
वारेंगे अपनी मुसकान,
आओ, इनके संग-संग खेलें
छेड़ो तुम भी मीठी तान।