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चलो चलें दो-चार क़दम / नईम
Kavita Kosh से
चलो चलें दो-चार क़दम
मिल आएँ ईद से।
लबेबाम यह ईदगाह
या उस मसीत से।
चलो चले मिल आएँ ईद से।
क़ाबे और कर्बलाओं में बारूदी गंधे मँडरातीं,
तनिक खैरियत उगी कहीं तो सत्ता की भेड़ें चर जातीं।
हाफ़िज, फिरदौसी या
उमर चचा क्या होंगे,
वो न सही,
मिल आएँ हम उनके मुरीद से।
यह कछुए-खरगोशों वाला समय नहीं, ये टेढ़ा-बाँका,
साँपों-सा फुफकार रहा, जातक ये जाने किस माँ का।
आसमान नीचे आया
सूरज माथे पर
चलो भगत, बिस्तर छोड़ो
अब उठो नींद से।
चलो चलें मिल आएँ ईद से।
क्या ज़मीर मर गया, या कि गिरवी रख छोड़ा, बिका हुआ है?
अपना नीला आसमान उम्मीदों पर ही टिका हुआ है।
बुल्लेशाह मिले तो बेहतर-
गले मिलेंगे,
गले मिलेंगे नानक से-
बाबा फरीद से।
चलो चलें मिल आएँ ईद से।