भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलोॅ तनी संभलि केॅ / सियाराम प्रहरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलोॅ तनी संभलि केॅ
दु डेग चलोॅ लेकिन चलोॅ तनी संभलि केॅ

चारो दिश आय फैलल छै अन्हेरा
लागै छै अभी बहुत दूर है सबेरा
तेजी से दौड़ोॅ नै चलोॅ तनी हलके
डगमगाय गिरि जैभेॅ गलत चाल चलि केॅ
चलोॅ तनी संभलि केॅ

झुलसै छै काँपै छै, धरती श्री हीना
संकट में प्राण छै, अ मुश्किल छै जीना
एन्हों उपाय करोॅ अमरित घट छलके
दुख भागथों तभिये करबट बदलि केॅ
चलो तनी संभलि केॅ

दोलित छै सागर उद्वेलित लहर लहर
ऐसी ना बीते छै जीवन ई जीवन भर
के देतै दिशा-बोधा मौसम बदलि केॅ
स्वर्ग बनेॅ धरती सब नाचेॅ मचलि केॅ
चलो तनी संभलि केॅ