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चश्मा / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
Kavita Kosh से
वह फूटता है
अँधेरों ही अँधेरों में
रास्ता टटोलता
अगनित जकड़नों से
उबरता—उबरता
परत-दर-परत चीरता पहाड़
क़तरा—क़तरा छनता
स्वच्छ और निर्मल
प्रकाश को नमन करता
कड़क सर्दी में कोसा
गर्मी में शीतल
मौसमों की क्रूरताओं का विरोधी
मौसम पीड़ितों का हमदर्द
जंगल से लौटते लकड़हारों के
शहर से लौटते दिहाड़ीदारों के
कठिन सफ़र के बीचों-बीच
आत्मीय पड़ाव
प्यास बुझाने को तत्पर
स्फूर्ति भरने को आतुर
धरती का दोस्त
बच्चों का खिलौना
अच्छे दिनों का तरफ़दार.