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चाँद / राबर्ट ब्लाई
Kavita Kosh से
पूरा दिन कविताएँ लिखने के बाद
मैं निकल जाता हूँ चीड़ के पेड़ों के बीच चाँद देखने के लिए
दूर जंगल में बैठता हूँ चीड़ के एक पेड़ से टिककर
अपनी ड्योढ़ी उजाले की तरफ कर रखी है चाँद ने
मगर अँधेरे में है उसके घर के भीतर का हिस्सा
अनुवाद : मनोज पटेल