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चाँद का मुँह टेढ़ा नहीं / राजेश श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
रोशनी
किसी तलघर या गोदाम में नहीं
रोशनी भोगने की
नीयत में कैद है।
चाँद न तो बेडौल है
न चाँद का मुँह टेढ़ा है
लेकिन जब/आस-पास/अंदर-बाहर
कोई संगति नहीं होती
तब अपनी ही विसंगतियाँ
चाँद को टेढ़ा और बेडौल बना देती हैं
इसलिए
चाँद को टेढ़ा कहने से पूर्व
अपनी आँखों को/ हर कोण से परखिए
पुतलियों को /हर एंगिल से देखिए
क्योंआकि चाँद तो वही होता है
अवसर दृष्टि ही टेढ़ी हो जाती है।