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चाँद निचोड़ा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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 98
शब्दों की ओट
ये शब्द -सौदागर
देते हैं चोट ।
 99
 भटक रहा
दर-दर ईश्वर
न भक्त मिला ।
 100
अस्थि-पंजर
है भूख से व्याकुल
प्रभु के घर।
 101
भेड़ें जनता
भेड़िए पग-पग
ताक लगाए ।
 102
दया व नारी
जीवन के जुए में
दोनों ही हारी ।
104
शिशु -सी धूप
उतर रही घाटी में
मोहक रूप ।
105
बजा माँदल
घाटियों मे उतरे
मेघ चंचल ।
106
चढ़ी उचक
ऊँची मुँडेर पर
साँझ की धूप ।
107
हो गई साँझ
धूप -वधू लजाई
ओट हो गई ।
108
ईर्ष्या की आग
जला देती जिसको
होता वो राख ।
109
दो घूँट प्यार
किसी का है जीवन
दे दें जो आप ।
 11 0
तुम्हारा कल
भला मैं क्यों पूछता
आज हो मेरे ।
 111
छू लूँगा माथा
मिटेंगे सब ताप
मेरे हैं आप ।
 112
आँसू झरेंगे
व्याकुल मन को ये
दुखी करेंगे ।
 113
कब क्या देना
ईश्वर इसे जाने
हम न मानें ।
 114
दो पल मिले
मधुर प्यार के जो
स्वर्ग से बड़े ।
 115
आई जब थी
जीवन -सांध्य -बेला
तुम थे मिले ।
 116
मुझे तो भाया
सादगी में नहाया
रूप तुम्हारा ।
 117
चाँद निचोड़ा
और दे दिया वह
रूप तुमको ।
 118
उनसे गिला
जिनसे धोखा कभी
तुमको मिला ।