चाँद पर नाव (कविता) / हेमन्त कुकरेती
आओ! चाँद पर नाव चलाते हैं
उसने गम्भीर होकर कहा
आसपास हत्यारे थे उनके हत्या करने के विचार
इन दिनों छुट्टियाँ मनाने परिवार सहित गाँव गये थे
जुलूस में गये हुए पड़ोसी गला बैठ जाने से
गरारे कर रहे थे
परिवार में दूर के सम्बन्धी के मरने की
चार दिन पुरानी ख़बर
रोटी के साथ परोसी गयी
स्कूल से भागे हुए बच्चे ज़्यादा ख़ाने से परेशान थे
हँस-हँसकर पेट दुख रहे थे औरतों के
जोा सर्दियों को बुन रही थीं
अपने पतियों के मज़ाक़ के साथ
सूरज वक्त पर उगता था रात समय पर होती थी
राजधानी में सूखे का डर नहीं था
सरकारी घोषणाएँ डरी हुई थीं मित्र देश के गृहयुद्ध से
बच्चे जन्म ले रहे थे बूढ़ों की उम्र बढ़ रही थी
उसने मज़ाक में नहीं कहा था कि
चाँद पर नाव चलाते हैं
यह बात उससे गम्भीरता से कहलवाने में
किसकी भूमिका थी?
समाज में जो जहाँ था उसे वहाँ नहीं होना चाहिए था
आसपास रेत थी नाव नहीं थी कहीं
चाँद इमारतों के पीछे छटपटा रहा था