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चाँद पर निर्वासन / लीना मल्होत्रा

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मोहनजोदड़ो के सार्वजानिक स्नानागार में एक स्त्री स्नान कर रही है
प्रसव के बाद का प्रथम स्नान
सीढ़ियों पर बैठ कर देख रहे हैं ईसा, मुहम्मद, कृष्ण, मूसा और ३३ करोड़ देवी देवता
उसका चेहरा दुर्गा से मिलता है
कोख मरियम से
उसके चेहरे का नूर जिब्राइल जैसा है
उसने जन्म दिया है एक बच्चे को
जिसका चेहरा एडम जैसा, आँखे आदम जैसी, और हाथ मनु जैसे हैं
यह तुम्हारा पुनर्जन्म है हुसैन
तुम आँखों में अनगिनत रंग लिए उतरे हो इस धरती पर
इस बार निर्वासित कर दिए जाने के लिए
चाँद पर

तुम वहाँ जी लोगे
क्योंकि रंग ही तो तुम्हारी आक्सीजन है
और तुम अपने रंगों का निर्माण ख़ुद कर सकते हो
वहाँ बैठे तुम कैसे भी चित्र बना सकते हो

वहाँ की बर्फ़ के नीचे दबे हैं अभी देश काल और धर्म

रस्सी का एक सिरा ईश्वर के हाथ में है हुसैन
और दूसरा धरती पर गिरता है
अभी चाँद ईश्वर कि पहुँच से मुक्त है
और अभी तक धर्मनिरपेक्ष है

वह ढीठौला
ईद में शामिल, दीवाली में नदारद
वह मनचला करवा चौथ पर उतरता है हर स्त्री इंतज़ार में
सुंदरियों पर उसकी आसक्ति तुम्हारी ईर्ष्या का कारण न बन जाए कहीं ...

हुसैन
चाँद पर बैठी बुढ़िया ने इतना कपड़ा कात दिया है
कि कबीर जुलाहा
बनाएगा उससे कपड़ा तुम्हारे कैनवास के लिए
और धरती की इस दीर्घा से हम देखेंगे तुम्हारा सबसे शानदार चित्र
और तुम तो जानते हो चाँद को देखना सिर्फ़ हमारी मज़बूरी नही चाहत भी है

तुम्हारा चाँद पर निर्वासन
शुभ हो !
मंगल हो !