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चाँदनी में नहाए हुए हैं / चेतन दुबे 'अनिल'
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चाँदनी में नहाए हुए हैं
अश्क फिर भी बहाए हुए हैं
चार दिन जिन्दगी में रही वो
महल सपनों के ढाए हुए हैं
चाँद क्यों मुझको यों देखता है
आजकल हम पराए हुए हैं
कोकिले ! किसलिए कूकती हो
राग सब मेरे गाए हुए हैं
आपको क्या बताएँ कहानी
किसके हाथों सताए हुए हैं
जिन्दगी में न भूले कभी जो
हम सजा ऐसी पाए हुए हैं
कौन अब दर्द मेरा बटाए
उनको दिल में बसाए हुए हैं
गैर क्या खा के समझेंगे मुझको
वो ही दिल में समाए हुए हैं