चाक ऐ दिल की करें हिमायत क्या / संकल्प शर्मा
चाक ऐ दिल की करें हिमायत क्या,
दिलजलों की भी है अदालत क्या।
ज़िन्दगी के तो अपने मसले हैं,
ज़िन्दगी से करें शिकायत क्या।
अब उलझता हूँ तेरी यादों से,
हो गई देख मेरी हालत क्या।
एक तेरे ज़िक्र भर से साँसों मैं,
छिड़ गई आज ये बग़ावत क्या।
किस्सा ऐ दर्द सुनो, सुन के कहो,
तुमको भी दर्द से है राहत क्या।
खुशमिज़ाजी से भर गया है जी,
ग़म की लौटाओगे अमानत क्या।
कितने नादान हो जानते भी नहीं,
दिल लगाना है एक आफ़त क्या।
हादसा होना था सो हो ही गया,
अब करें इसपे हम सियासत क्या।
सरकशों में ना पूछिए ये सवाल,
सर बचेंगे यहाँ सलामत क्या।
फ़िर किसी दिन बताएँगे तुमको,
दिल्लगी क्या है और चाहत क्या।
मैंने झेले हैं फासिले तेरे,
अब सितम ढहाएगी क़यामत क्या।
ज़ुर्म ऐ उल्फ़त कबूल है मुझको,
तुम करोगे मेरी वकालत क्या।
हर घड़ी तुम ही याद आते हो,
याद आने की है ये आदत क्या।
ख़स्ता दिल की तो वो नहीं सुनता,
ख़स्ता दिल की नहीं इबादत क्या।