चान्द, चिड़िया और भूख / श्रीधर करुणानिधि
एक सच है भूख
जितनी दुनिया सच है
और एक यह भी
कि एक छोटी सी चिड़िया
अपनी चोंच से गढ़ती है यह दुनिया
तब यह मानते हुए
कि हर दिन दुनिया नई हो जाती है
अपने कल से
भूख भी नई और बड़ी
यह दुनिया
चूल्हे पर चढ़े तवे से
जाना चाहती है जितनी दूर
यह भूख उतनी बड़ी होती जाती है
आदिम जौ-गेंहूँ के खेतों से शुरू होकर
जब एक यात्रा पहुँचती है एक बड़ी मण्डी तक
तब चान्द दावा करता है चिड़िया से बड़ा होने का
और भूख तब भी बड़ी दिखती है
चिड़िया कहती है
कि उसकी चोंच के बीच अन्न का एक दाना
चान्द से बड़ा है
और चान्द !
वह तो सच में बड़ा दिखता है दाने से
लीजिए, अब चिड़िया की चोंच से बनी दुनिया
रोटी के तवे पर सिंका-फूला चान्द
और बढ़ती हुई भूख सब को गड्ड-मड्ड कर देते हैं
तब भी एक सच यह है
कि चान्द भी रोटी की तरह फूलता है
चिड़िया भी चान्द की तरह हंसती है
अन्न का दाना चिड़िया की तरह फुदकता है
और दुनिया में भूख तब भी बढ़ रही है
चान्द होने की ...।