भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाय पीते हुए / राधावल्लभ त्रिपाठी
Kavita Kosh से
कसैला मधुर स्वाद
हर चुस्की में नया होता हुआ
हाथ में लिए कप में झलकती लगती है
चाय के बगीचों की हरियाली
दूर-दूर तक घाटियों में फैली
आसाम, सिक्किम या दार्जिलिंग में
पीठ पर बाँस की टोकरी टाँगे
तेज़ी से हाथ चलाती
चाय की पत्ती चुनने वाली किसी स्त्री का
अपार श्रम
जो उसने निरन्तर एक-एक पत्ती चुनते हुए किया
चाय में उसकी भी तो गन्ध घुली है
मीठी और कसैली ।