चारबाग स्टेशनः प्लाटफार्म नं० 7-चार / वीरेन डंगवाल
प्लाटफार्म नं. सात है यह
उत्तर रेलवे की सारी उपेक्षित रेलगाडियों का कटरा
मेलें, राजधानियां, शताब्दियां चूमती हुई जा रहीं
नवाबों की सरजमीन लखनऊ की
बुर्जियों, मीनारों, महापुरूष प्रतिमाओं और
अहर्निश विलास निद्रा में डूबे उन महापुरूषों को भी
जिनमें कोई वाणी का जादूगर कानून का महारथी
कोई चापलूसों का सिकंदर
जीवनी लेखक
कोई आंकड़ों का उस्ताद
भू-माफिया, ड्रग-तस्कर, भूतपूर्व बन्दूकबाज
किसी ने जीवन ही समर्पित कर दिया कथक के लिए
तो कोई अक्षत यौवना किशोरियों और उम्दा जर्दा-पान मसाला का शौकीन
कोई कत्लो-गारत में ऐसा निष्णात
कि अपनी भंगेड़ी मुस्कुराहट के साथ
कुछ देते-बांटते भी
आहिस्ता से जानें ले लेता है
अंधेरा नहीं है
कोई जुलूस भी नहीं
एक विशालकाय स्टेडियम है मधुमास का
और सुसज्जित दर्शकदीर्घा में बैठे
प्रतिस्पर्धी खिलाड़ी मुदित भाव से देख रहे
मैदान में लठ्ठम-लठ्ठा होती
कंगलों की टोलियों को
‘शायर हो मत चुपके रहो
इस चुप में जानें जाती हैं’ कहते थे उस्ताद
मीर तकी मीर
सो चारबाग स्टेशन की गदहा लाइन पर
मन ही मन यही दोहराते
मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं
बरेली मुगलसराय पसिंजर की
जो अनिश्चिकालीन विलम्ब से है.
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