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चारों सखी चारों ही पनियां को जायें / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
चारों सखी चारो ही पनियां को जायें
कुएं पर चढ़ के चारों करें बिचार
अरी सखी तुझे कैसे मिले भर्तार
एरी पतले कुंवर कन्हैया हम पाये भर्तार
सखी! बीस बरस के हैं वे सचमुच राज कुमार
सखी! फूटा पर भाग्य हमारा
अस्सी बरस के हमें मिले भर्तार
वे ज्यों ही उठते गड़गड़ हिलती नाड़
सूनी अटरिया बिछी सेजरिया हमें बुलावैं पास
सखी! बाबा सा लागै री हमें सेज लगे उदास
सखी! ताऊ सा लागै री हमें दिया सरम ने मार
भाग्य में लिखा हमारे था अरी नहीं किसी का दोष