भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाह / पंकज सुबीर
Kavita Kosh से
मैं वहाँ नहीं ठिठकूँ
जहाँ लिखा हो पड़ाव
वहाँ भी नहीं ठहरूँ
जहाँ लिखा हो मंज़िल
मैं चलता ही रहूँ
बस चलता ही रहूँ
समय चक्र चलता रहे
मैं गतिमान रहूँ
ठहरने के मायने होते हैं
संतुष्टी
और संतुष्टी का अर्थ होता है
समाप्त हो जाना
मंज़िल पर जाकर ठहरने का अर्थ होगा
जीवन का समापन
और फिर रह जाएगी प्रतीक्षा
केवल अंत की
इसीलिए मैं समय को
प्रतीक्षा में नहीं खोना चाहता
मैं चाहता हूँ कि
केवल अंत ही
मेरी गति को थामे
मंज़िलों का भ्रम
और पड़ावों का आकर्षण
मुझे बाँध न पाए
जब समय नहीं रुकता
तो मैं क्यों रुकूँ
जब तक साँस न रुके
मैं चलता ही रहूँ, चलता ही रहूँ
चलता ही रहूँ