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चाहतें अपनी विसर्जित कर रहा हूँ / राहुल शिवाय

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खुश रहो तुम ज़िन्दगी में प्राण! हरपल
चाहतें अपनी विसर्जित कर रहा हूँ

मानकर देवी, हृदय में बास देकर
नित्य मैं करता रहा अभिसार तुमसे
सुखद क्षण की आँधियों में खो गया मैं
और जुड़ता ही रहा संबंध गम से
वर्जनाओं में निहित पीड़ा हृदय की
आँसुओं में मैं प्रवाहित कर रहा हूँ

अर्थ क्या पत्रों का यदि तुम ही नहीं हो
चुभ रहे हैं शब्द इनके शूल बनकर
क्या करूं उपहार को घर में सजाकर
दर्द का उपहार जब रहता हृदय-घर
विरह-अग्नि को मेरे उर में बसाकर
अग्नि को उपहार अर्पित कर रहा हूँ

भूल थी अपराध था जो ही मगर था
है यही निष्कर्ष गम को भोगना है
मानता हूँ भूलना तुमको असंभव
पर चिता से व्यर्थ जीवन माँगना है
हो नहीं कलुषित जगत में प्रेम साथी
वेदना से शक्ति अर्जित कर रहा हूँ

रचनाकाल-30 अगस्त 2017