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चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे / मजरूह सुल्तानपुरी

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चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे
फिर भी कभी अब नाम को तेरे
आवाज़ मैं न दूँगा, आवाज़ मैं न दूँगा

देख मुझे सब है पता
सुनता है तू मन की सदा (२)
मितवा ...
मेरे यार तुझको बार बार
आवाज़ मैं न दूँगा, आवाज़ मैं न दूँगा
चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे

दर्द भी तू चैन भी तू
दरस भी तू नैन भी तू
मितवा ...
मेरे यार तुझको बार बार
आवाज़ मैं न दूँगा, आवाज़ मैं न दूँगा