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चिंता / दुष्यन्त जोशी

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कुण गावै
ब्यांव रा गीत
मन री प्रीत

गीतेरण कुण जोवै
नीं कोई लोवै-तोवै

लोक संस्कृति री
कुण करै चिंत्या

सै' सूकरया है
आप-आपरी चिंत्या में

लोक संस्कृति री चिंत्या
किण नै खासी

किण री पांती में आसी
ठाह कोनी।