चिंता क्यों करते हो / मुकुट बिहारी सरोज
चिंता क्यों करते हो ग़लत बयानी पर बूढ़ी दुनिया की
न्यायाधीश समय निर्णय कर देगा अपने आप एक दिन ।
व्यर्थ नहीं जाता है बोया हुआ पसीना
अलबत्ता उगने में देर भले हो जाए
एक न एक रोज़ सुनवाई होगी श्रम की
मौजूदा युग में अँधेर भले हो जाए
अगर तुम्हारी फ़सल रही निर्दोष बादलों का विरोध क्या
सागर ख़ुद क्यारी-क्यारी भर देगा अपने आप एक दिन ।
बात अभी ऐसी है ये जितने वकील हैं
इन सबके मुँह बंद कर गई है तरुणाई
ये पत्थर-दिल कभी अश्रु का पक्ष न लेंगे
बेक़सूर मर जाए भले कोई तरुणाई
गिरफ़्तार हो गए तुम्हारे नाबालिग सपने इससे क्या
सूरज ख़ुद उड़ने लायक पर देगा अपने आप एक दिन ।
इसमें कोंई शक नहीं कि हर रिश्वती बाग़में
मौसम की मान मणी खुले आम चलती है
लेकिन इसका यह मतलब हरगिज़ मत लेना
दुर्दिन की अंधियारी रैन नहीं ढलती है
निर्वासित कर दिया तुम्हारा फूल क्योंकि काफी हँसता था
जंगल में मधुमास स्वयं घर देगा अपने आप एक दिन ।