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चिंदियां / तरुण भटनागर
Kavita Kosh से
जिस पर सूख रहे हैं-
चीथड़े ़ ़ ़।
बरसों बाद,
जो चिंिदयां रही हैं,
उन्हें,
धोकर, सुखाकर, प्रेसकर ़ ़ ़
पहरने का,
एक सुकून है।
हां,
एक झिझक भी है,
लोग क्या सोचते होंगे,
बिना छुपी नग्नता देखकर ़ ़ ़।