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चिड़िया / मोहन साहिल
Kavita Kosh से
जाने क्यों है धरती पर चिड़िया
नन्ही सी सहमी-सहमी
इतनी बड़ी दुनिया में बलिश्त भर
तिनके, दाने और घोंसले के बीच उलझी फँसी
कहने को है उसके लिए आकाश
मगर पेड़ से पेड़ तक की दूरी भी बहुत है
पँख तौलती बुरुँश की उस टहनी तक जाने को
शिशु चोंच फैला रोक लेते
और वह दोनों की खोज में जुट जाती
दयार की चोटी से दीखता
तालाब का चमकता पानी
ऐन वक्त पर नजर आता उसे
अपने घोंसले का टूटा कोना
तिनके खोजने निकल पड़ती
छोटी सी चिड़िया
अपनी छोटी होती दुनिया देख
दुख में कराहती जब अक्सर
उसे उसका गीत समझ
खुश होते लोग
वह झुँझला कर
जा दुबकती अपने घोंसले में।