चली गई बस्ती से आख़िर
चिड़िया कभी नहीं आएगी !
नन्हे-नन्हे पँखों वाली
चिड़िया फुदकी डाली-डाली
कितनी कोमल, कितनी प्यारी
घर-भर में लाई ख़ुशहाली
उसकी याद रहेगी, लेकिन
मन को सदा भिगो जाएगी !
चिड़िया से थी घर में रौनक
बस्ती-भर में चहल-पहल थी
वह थी, तो घर भी ज़िन्दा था
और ज़िन्दगी की हलचल थी
उसके बिना समूची बस्ती
पर ख़ामोशी-सी छाएगी !
चिड़िया चहकी घर-आँगन में
चिड़िया डोली वन-उपवन में
चिड़िया को ले गए शिकारी
जाने किस बीहड़ निर्जन में
बस्ती गुमसुम है, उदास है
चिड़िया अब न कहीं गाएगी !
कितना क्रूर, नृशंस, नराधम
कैसा दल था बहेलियों का
प्रश्नाकुल बस्ती में कोई
मिला न उत्तर पहेलियों का
बस्ती की क़िस्मत फूटी है
सिर धुन-धुनकर पछताएगी !
पर उत्तर तो देना होगा
मौन सुलगते इन प्रश्नों का
क्या इतना ही दारुण होगा
अन्त भविष्यत् के सपनों का
कातर चीख़ भला यों कब तक
तहख़ानों से टकराएगी !
शिकारियों के इस कुकृत्य को
समय कभी क्या माफ़ करेगा
चिड़िया अगर नहीं है, तो क्या
कोई तो इनसाफ़ करेगा
तब तक चिड़िया की क्षत आत्मा
सबके सिर पर मण्डराएगी !