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चिड़िया को देखना / पारुल पुखराज
Kavita Kosh से
चिड़िया को देखना
ख़ुद को देखना है
जैसे
देखती है
वह
फूल
पत्ती
दूब
धूप
उड़ती है जंगल में
जंगल होकर
नदी पर
नदी-सी बहती है