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चिमतकार! / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
बुढ्ढै आभै री
आंख रा गीड
धरती रा बादळ,
खींवती बिजळही
डोकरै री
चिलम री लपट,
धोळा ओळा
खंखार रा डचका,
अवधूतां रो
सुगलवाड़ो
माटी रो वरदान,
इण रो ही नांव
चिमतकार
करै निमसकार
बापड़ी आखी,
जीवा जूण !