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चिर-नवीन वीण-क्वाण / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

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सुनता मन आदिनाद, चिर-नवीन वीण-क्वाण,
होकर विज्ञानवान, मननवान, ध्यायमान।
नाद-गन्ध से बँधकर आप्तकाम होता मन,
तम के भीतर रहकर, करता तम का नियमन।

अग्निपूत, वायुपूत मेरा मन निर्विकार,
चिदाकाश में विलीन चिद्घन मंगलकार।
धैवत-मध्यम, निषाद, प´्चम का मन्द्रतार,
भरता अन्तरघन में ध्वनि-मरोर बार-बार।