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चिर-सोहागिनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
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चिर सोहागिनी प्रकृति प्रियाकेर भरल वयस ई साओन-भादव!
ककर कटा तड़ित चंचल अछि, ककर पुलक ई नव कदम्ब अछि
जलद-जाल बनि ककर अलक आकुल ई पसरल दिग्-दिगन्त अछि?
ककर बलाका ललित प्रेम-लिपि गगन-पत्रमे अंकित नित नव?
चिर सुहासिनी प्रकृति प्रियाकेर तरल वयस ई साओन-भादव।।1।।
उमड़लि सरिता सिन्धु-संगमा, आलिंगित-तरु लता भंगिमा
दूभि-सेज सजि वासक सज्जा वसुधा पहिरलि पट-हरीतिमा
दिन रजनी घन पट आवृत भय एकाकार, न अछि विभेद लव
चिर विलासिनी प्रकृति प्रियाकेर सरस वयस ई साओन-भादव।।2।।