भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिरई!खोंता कहीं लगावऽ / हरींद्र हिमकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवनो जुगुत लगा के
उड़िजा
खोंता कहीं लगावs
चिरई!खोंता कहीं लगावऽ

सूखत बाग बगईचा इहंवाँ
हवा इहाँ महुराईल
पानीे में मछरी मरि गईली
कमल-नाल मुरझाईल
सम्भव बा पनिए से जरि जा
डैना के फईलावऽ
चिरई! खोंता कहीं लगावऽ

तन बउराईल ,मन बउराईल
छीन-झपट में सब अझुराईल
मुँह में राम बगल में छुरी
पता कहाँ ! के आपन -बाईल
मानुष हीन लोक में बढ़ि जा
आपन बंस बचावऽ
चिरई खोंता.........

धरम पाताका जहवाँ बड़का
महा जाल उहँवे बा
ढोंग -ढिंढोरा पसरल सगरो
नाल -काल उहँवे बा
धरम -जाल से बंचके बढ़ि जा
आपन अंस बचावऽ
चिरई!खोंता .......

दाना-दाना में बा फाना
माया जाल रचल बा
नेता भईल मदारी पंछी !
कहंवाँ सांच बंचल बा?
आपन नेत बंचा के टरि जा
कतहीं नाचऽ-गावऽ
चिरई! खोंता......

घर -घर में बारूद इहाँ बा
दर-दर तोप तनाईल
मौसम भइल शिकारी पंछी
टीपा-जाल छिटाईल
अबहीं आँखि बंचा के उड़ि जा
कतहीं चोंच लड़ावऽ
चिरई! खोंता......