भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चीशें की पूं / रित्सुको कवाबाता
Kavita Kosh से
|
चीशें बच्ची है दो साल की
चेहरा गोल जैसे कि - चाँद ,
आँखों में कौतूहल !
रविवार के भोजन के बाद का मौन
टूटता है अकस्मात
'पूं....."
मैंने नहीं किया कहती है बहन
हर बड़ा दबाता है अपनी हसीं
चीशें कि गोल आँखे पूछती हैं
सब क्यूँ हंस रहे हैं ?
अनुवादक: मंजुला सक्सेना