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चुंबनों की चमक / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

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रात के वक़्त
जब सारी दुनिया
अपने-अपने घरों में
लौट जाती है
और रास्तों का कोई अर्थ नहीं बचता
बंद घरों के भीतर
खुलने लगता है प्रेम
चुंबनों की चिंगारी से
चमकता घर
तारे-सा दीखता है
हर घर की इच्छा एक तारा होना
पृथ्वी भर उठती है चमकते तारों से
अन्तरिक्ष में धूप फैलती है