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चुनमुन चिरैया / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

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चुनमुन चिरैया
तुम चहकती रहना
क्या हुआ जो सूखने लगे हैं वृक्ष
बदलते जा रहे हैं ठूँठ में
प्रवासी न हो जाना तुम
हो तो लगता है कहीं तो कुछ है
जहाँ
बचा रह सका है हमारे भीतर का आदिम
जहाँ अब भी टूटता है सन्नाटा
चौंक जाता है मुर्दाघर यह शहर
खिलखिला उठते हैं फूल
तुम्हारी तीक्ष्ण मधुर लंबी-सी तान के तारों पर
कस उठती हैं ऋतुएँ मचलती हैं हवाएं
कुनमुनाता है कोई
धरती की कोख में
जब तक तुम्हारी आवाज है जिन्दा
ज़िंदा है आदमी रहेगा आदमी जिन्दा की तरह
चुनमुन चिरैया।